एक दिन की अनशन पर बैठेंगे सचिन पायलट, गहलोत की सांसें अटकी
जयपुर। राजस्थान सरकार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है इस समय अशोक गहलोत और सचिन पायलट में रार ठनी हुई है… कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने एक बार फिर अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आरोप है कि जनता से किया गया वादा अशोक गहलोत ने पूरा नहीं किया है। वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए पायलट अपने समर्थकों के साथ 11 अप्रेल को जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना देंगे। पायलट के इस ऐलान सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं चल रही है। लोग एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस में रहते हुए कब तक अशोक गहलोत पर सियासी हमला करते रहेंगे। गहलोत के कामकाज को लेकर पायलट पिछले तीन साल से तंज कसते आ रहे हैं। पायलट ऐसा ही करते रहेंगे या कोई अलग राह तलाशेंगे। पिछले दिनों यह भी चर्चाएं चली थी कि पायलट बीजेपी में जाएंगे लेकिन जिस तरह का आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। उसे देखकर लग रहा है कि वे बीजेपी से ईतर कोई नया रास्ता खोज रहे हैं।
सचिन पायलट द्वारा अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन पर बैठने से उन्हें कोई व्यक्तिगत फायदा होने वाला नहीं है। समर्थकों का कहना है कि सचिन पायलट ने खुद के स्वार्थ के लिए यह कदम नहीं उठाया है बल्कि जनता से किए गए वादे को पूरा नहीं किए जाने पर ऐसा करने को मजबूर हुए हैं। इससे जनता के दिलों में पायलट का कद और बढ जाएगा। साथ ही पार्टी आलाकमान तक यह बात पहुंचे कि जनता से किए गए वादों को गहलोत ने भुला दिया है। सचिन पायलट द्वारा जुलाई 2020 में उठाए गए कदम को लेकर लोग उन्हें कटघरे में खड़ा करते रहे हैं लेकिन अब सचिन पायलट ने साफ साफ बता दिया है कि वे अपनी ही पार्टी की सरकार के मुखिया के खिलाफ क्यों हैं। पायलट ने गहलोत के कुछ वीडियो भी सार्वजनिक किए हैं। उन वीडियोज में गहलोत द्वारा कही गई बातों को लेकर पायलट ने गहलोत को कटघरे में खड़ा किया है। पायलट को फायदा हो ना हो लेकिन उनके इस कदम से गहलोत की छवि को नुकसान जरूर होगा।
पायलट को नुकसान की गुंजाइस भी नहीं
सचिन पायलट ने जो अनशन का ऐलान किया है। यह कदम उठाने पर उन्हें किसी भी प्रकार के नुकसान होने की संभावना भी नजर नहीं आ रही है क्योंकि पायलट के पास खोने को कुछ नहीं है। जुलाई 2020 में जब सचिन पायलट ने बगावती तेवर दिखाए थे तब उन्हें पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया था। पिछले ढाई साल से सचिन पायलट के पास सरकार और संगठन में कोई पद नहीं है। विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनावों के दौरान कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट के स्टार प्रचार के रूप में काम में लेते हैं। आलाकमान के आदेश पर पायलट अलग अलग राज्यों में जाते रहे हैं और केन्द्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोलते रहे हैं। इसके बावजूद भी पायलट को पार्टी की ओर से कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। ना तो वे पार्टी की नेशनल बॉडी में हैं और ना ही स्टेट बॉडी में। ना भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही कि आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री बनाने वाली हो। जब खोने को कुछ है ही नहीं तो भला पायलट किसी से क्यों डरे।
पायलट का अगला कदम क्यो हो सकता है
सचिन पायलट पिछले पौने तीन साल से कांग्रेस में घुटन सी महसूस कर रहे हैं। भले ही वे ऐसा सार्वजनिक रूप से नहीं कह रहे लेकिन उनके बयानों, बॉडी लैंग्वेज और सरकार के मुखिया पर बार बार कस रहे तंज से तो ऐसा ही लग रहा है। लोगों के जहन में एक ही सवाल आ रहा है कि अब सचिन पायलट का अगला कदम क्या होगा। क्या वे कांग्रेस को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल होंगे या नई पार्टी बनाकर चुनाव में उतरेंगे। हालांकि सचिन पायलट के सामने कई विकल्प खुले हैं। बीजेपी सहित दूसरे राजनैतिक दलों में सचिन पायलट के लिए दरवाजे खुले हैं। यह सचिन पायलट पर निर्भर करेगा कि वे किसी पार्टी में जाते हैं या नई पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरते हैं। इतना तो तय है कि राजस्थान में गहलोत के नेतृत्व वाली पार्टी में रहकर काम नहीं कर पाएंगे।
सचिन पायलट के संयम की दाद देनी होगी। पिछले तीन साल में पायलट पर कई गंभीर आरोप लगे। उनके लिए नकारा, निकम्मा और गद्दार जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया लेकिन पायलट ने सारे सियासी हमले सहन किए। उन्होंने पलटवार भी किया लेकिन संयम बरतते हुए मर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करते हुए जवाब दिए। 32 महीनों में शायद ही कोई ऐसा महीना बीता हो जब सचिन पायलट पर तंज नहीं कसा गया हो। तंज सुन सुन कर सचिन पायलट ऊब चुके हैं। पार्टी आलाकमान सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं कर रहे। पायलट द्वारा पत्र लिखकर स्थितियों से अवगत कराए जाने के बावजूद भी आलाकमान चुप्पी साधे बैठे रहे। ना तो पायलट की चिट्ठियों पर कोई एक्शन लिया और ना ही पार्टी में झुलसी अंदरुनी आग को शांत करने की कोशिश की। यही वजह है कि पायलट के संयम अब जवाब दे गया। अब सब्र टूटने पर उन्होंने अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन करने का कदम उठाया।