‘साष्टांग और सेंगोल’ से तमिलनाडु में सेंध लगाएगी BJP इसलिए PM मोदी ने दोहराया 9 साल पुराना दिन
नई दिल्ली। मोदी ने एक बार फिर से नौ साल पहले की तरह ही संसद भवन में “साष्टांग प्रणाम” किया और “संगोल” को स्थापित किया। संसद के उद्घाटन के दौरान देश की कई प्रमुख विपक्षी पार्टियों की उपस्थिति न होने के बाद भी सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की हो रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “साष्टांग और सेंगोल” से न सिर्फ सियासत को साधा है बल्कि तमिलनाडु से एक बार फिर से धीरे-धीरे ही सही भाजपा ने एक पैठ बनाने की बड़ी कोशिश शुरू कर दी है।
साष्टांग से इस तरह सधेगी सियासत
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तो संसद भवन के अंदर प्रवेश करने से पहले उन्होंने साष्टांग प्रणाम किया था। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु शितोले कहते हैं कि साष्टांग प्रणाम के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनानी शुरू कर दी थी। वो कहते हैं कि संसद भवन में साष्टांग प्रणाम के साथ एंट्री करते ही देश के राज्यों में भगवा पार्टी का झंडा लहराने लगा था। जो धीरे-धीरे देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में लगातार बढ़ता गया। वो कहते हैं कि नौ साल के भीतर देश की जो सियासी तस्वीर बदली उसको भाजपा के नेता इस ‘साष्टांग प्रणाम’ से जोड़कर भी देखते हैं। भारतीय जनता पार्टी के सांसद और दिल्ली प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर में साष्टांग प्रणाम करके देश की जनता को नमन किया बल्कि लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर और उस सेंगोल (राजदंड) को नमन करते हुए जनता के हितों को आगे रखकर काम करने का प्रण भी लिया है।
सेंगोल से दक्षिण की राजनीति में भाजपा बनाएगी पैठ
देश की नई बनी संसद की जितनी चर्चा इसकी भव्यता और विशेषताओं की हो रही है उससे ज्यादा चर्चा उस सेंगोल (राजदंड) की हो रही है जो तकरीबन ढाई हजार साल पहले चोल वंश के राजाओं के सत्ता हस्तांतरण के दौर में दिया जाता था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस तरह से इस राजदंड को लोकसभा में तमिल मठों के धर्माचार्यों का आशीर्वाद लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको स्थापित किया है, उसका तमिलनाडु में बड़ा प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक उमेश नारायण पंत कहते हैं कि बीते कुछ समय में अगर सियासत के नजरिए से देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु पर बहुत फोकस किया है। कहते हैं पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में काशी तमिल समागम का आयोजन किया था। एक महीने तक चलने वाली इस समागम में तमिल के 17 मठों से 300 से ज्यादा साधु संत और प्रमुख मठों के धर्माचार्य शामिल हुए थे।
दक्षिण भारत में अभी भी कमजोर है भाजपा
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी सियासी तौर पर अभी भी दक्षिण भारत में उत्तर और उत्तर-पूर्व की तरह मजबूत नहीं हो पाई है। उनका मानना है कि तमिलनाडु से आए धर्माचार्य और संसद में राजदंड को स्थापित करके एक तरह से भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु की राजनीति को और स्थानीय लोगों के बीच में अपनी मजबूत पैठ बनाने की कोशिश तो जरूरी की है। संसद में राजदंड को स्थापित किए जाने को लेकर सियासत भी लगातार गर्म बनी हुई है। इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी का कांग्रेस लगातार विरोध करती आई है। कांग्रेस के नेता जयराम रमेश कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस राजदंड को तमिलनाडु में महज राजनीतिक उद्देश्य के लिए ही स्थापित करना चाहते हैं। हालांकि देश के गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि कांग्रेस ने देश की इतनी महान प्रथा और विरासत को म्यूजियम में रखकर सहारा लेकर चलने वाली छड़ी के तौर पर छोड़ दिया था।
तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों पर एक भी सांसद भाजपा का नहीं
दक्षिण भारत के पांच राज्यों की 129 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के महज 29 सांसद हैं। इसमें से 25 सांसद उस कर्नाटक राज्य से हैं जहां पर हाल में हुए विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सत्ता गंवा दी है। आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु की 39 सीटों में से एक भी सीट पर भारतीय जनता पार्टी का सांसद नहीं है। देश में यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद तमिलनाडु सबसे ज्यादा सांसदों वाला राज्य है। भारतीय जनता पार्टी दक्षिण के इसी राज्य में एंट्री करने की तैयारी लगातार करती आई है। राजनीतिक विश्लेषक अखिल प्रकाश कहते हैं कि हालांकि लोकसभा सदस्य के तौर पर एक भी सदस्य न होने पर भाजपा यहां कड़ी मेहनत करके और ज्यादा संभावनाएं तलाश रही है। प्रकाश के मुताबिक लोकसभा में जिस भव्यता और धार्मिक माहौल के साथ तमिल धर्मगुरुओं और तमिल विरासत के स्वरूप राजदंड को स्थापित किया गया है उससे पार्टी तमिलनाडु में सियासी तौर पर खुद को मेहनत करके स्थापित करने की बड़ी संभावनाएं देख रही है।
इसलिए और ज्यादा करनी है भाजपा को मेहनत
तमिलनाडु ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में केरल की 20 सीटों में से एक भी सीट पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद नहीं हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कोई सांसद नहीं है। हालांकि तेलंगाना की 17 सीटों में चार सांसद भारतीय जनता पार्टी के हैं। राजनीतिक विश्लेषण और वरिष्ठ पत्रकार सुदर्शन कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के दक्षिण भारत में 29 सांसद हैं। सुदर्शन का कहना है कि कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी नहीं है। ऐसे में आने वाले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी कितना मजबूती से चुनाव लड़ेगी और उसका विधानसभा के चुनावों के परिणाम का क्या असर पड़ेगा यह भी देखा जाना जरूरी है। लेकिन सुदर्शन यह बात मानते हैं कि संसद भवन में राजदंड की स्थापना से तमिलनाडु की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी मजबूती से अपना जनाधार बढ़ाने के सभी प्रयास करेगी।