अधूरी रह गई परवेज मुशर्रफ की ये हसरत, मौत से पहले मेरठ में आकर करना चाहते थे ये काम
दिल्ली! पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का दुबई के एक अस्पताल में रविवार को निधन हो गया। पाकिस्तान व भारत के बीच वर्तमान समय में भले ही नफरतों की खाई हो, लेकिन देश में आज भी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासतें मौजूद हैं। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने रविवार को 79 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन परवेज मुशर्रफ अपनी मौत से पहले एक खास काम के लिए मेरठ आना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान में देश छोड़ने पर प्रतिबंध के बावजूद उनकी यह हसरत दिल में ही रह गई।
ईदगाह के पास मुशर्रफ के परिजनों की कब्र इस बात की गवाही दे रहीं हैं कि उनका मेरठ से गहरा नाता रहा है। बताया भारत व पाकिस्तान के बीच खाई और मुशर्रफ के विवादों में फंसने के कारण वह मेरठ नहीं आ पाए।
बता दें कि परवेज मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन उनकी ददिहाल और ननिहाल बागपत जिले के गांव कोताना में थी। कोताना के लोग उन्हें कारगिल युद्ध का गुनहगार मानते हैं, यही वजह है कि उनके निधन पर यहां शोक व्यक्त करना तो दूर, कोई दो शब्द संवेदना के भी बोलने को तैयार नहीं है।
परवेज मुशर्रफ मेरठ में अपने परिजनों की कब्रों पर फातिहा पढ़ने की हसरत दिल में पाले हुए थे। लेकिन उनकी मौत के बाद ये हसरत अधूरी रह गई। मेरठ में बाले मियां के मुतवल्ली मुफ्ती अशरफ ने बताया कि ब्रिटिश काल में बड़ौत के काजियों का कोताना गांव से जनरल परवेज मुशर्रफ का परिवार बहुत पहले दिल्ली जाकर रहने लगा था। दिल्ली में ही परवेज मुशर्रफ की पैदाइश थी। जबकि उनके परिवार के कई लोग मेरठ में रहते थे। बताया कि प्रोफेसर हुस्ना बेगम जो मेरठ शहर से विधानसभा चुनाव लड़ी हैं, वह परवेज मुशर्रफ की खाला जान (मौसी की लड़की) बहन हैं। मुफ्ती अशरफ के अनुसार पुराने लोग बताते हैं कि परवेज मुशर्रफ अपने अब्बू के साथ कभी मेरठ आए थे। हालांकि, उनकी याद में ऐसा नहीं हुआ।
मुशर्रफ की मां बेगम जरीन और पिता मुशर्रफुद्दीन दोनों ही बागपत के कोताना के रहने वाले थे। हालांकि मुशर्ऱफ का जन्म 1943 में दिल्ली के दरियागंज में हुआ था। उनके जन्म से काफी परिजन दिल्ली चले गए थे। बंटवारे के दौरान उनका परिवार दिल्ली से पाकिस्तान चला गया था। कुछ रिश्तेदार दिल्ली में रहते हैं। परवेज मुशर्रफ के निधन पर कोताना के ग्रामीणों से बात की गई तो उनका कहना कि जो यहां है ही नहीं, उसके मरने से उन्हें क्या लेना-देना ? प्रधान मुकीद खान, जावेद, मिंटू, इमरान, आमिर, कय्यूम, उद्दे खान, इलियास आदि बताया कि उन्हें खूब याद है कि गली के एक तरफ मुशर्रफ के पिता का महल था दूसरी ओर उनके चाचा का, उनकी मां बेगम जरीन भी यहीं की ही थी और यहीं पर उनकी शादी भी हुई। ग्रामीणों का कहना है कि कारगिल युद्ध के लिए हिंदुस्तान के गुनहगार मुशर्रफ ही थे। इस युद्ध में हमारे देश के न जाने कितने लाल शहीद हुए। यही कारण है कि हमें उनके मरने का कोई दुख नहीं हैं।
अब तो बस दीवार के निशां बाकी
परवेज के पूर्वज जिस मकान में रहा करते थे, वह कभी आलीशान महल था। नक्कासी की हुईं दीवारें, स्तंभ, पत्थरों के अवशेषों को यहां के निवासी उठाकर ले गए थे। हालांकि महल की दीवार अभी बची है। महल में मौजूद रही एक सीढ़ी भी दिखाई देती है। महल को तोड़कर एक समतल कर दिया गया और एक प्लाट का रूप देकर उसे बेचा जा चुका है।
मां जरीन को कोताना आने की नहीं मिली थी अनुमति
परवेज मुशर्रफ के पिता और मां जरीन दोनों अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े थे। दादा ब्रिटिश सरकार में दिल्ली में मुलाजिम थे। ग्रामीणों ने बताया कि 2005 में परवेज मुशर्रफ की मां जरीन दिल्ली आई। तब वह अपने पूर्वजों के गांव कोताना आना चाहती थी, लेकिन अनुमति नहीं मिलने के कारण उनकी यह हसरत पूरी नहीं हो पाई थी।