Mahakal Temple : अफसरों ने महाकाल को बनाया ‘वीआईपी का भगवान’, भक्त हो रहे दूर, पैसे नहीं तो 150 फीट से दर्शन
उज्जैन। उज्जैन में विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में बाबा महाकाल के सशुल्क दर्शन के नाम पर आस्था की मार्केटिंग हो रही है। आम श्रद्धालुओं से तो जैसे बाबा महाकाल को दूर ही कर दिया गया है। पैसे नहीं है तो करीब 150 फीट से कांच की आड़ से दर्शन करो। शीघ्रदर्शन, भस्मारती और गर्भगृह दर्शन के लिए 200 से 750 रुपये तक प्रति श्रद्धालु वसूले जा रहे हैं। इस पर भी कलेक्टर या कोई अन्य वीआईपी आ गया तो काहे का शीघ्र दर्शन! पैसे चुकाने के बाद भी एकाध घंटे की देरी हो ही जाती है। प्रशासनिक अफसरों की इस व्यवस्था ने महाकाल को वीआईपी और पैसे वालों का भगवान बना दिया है। इसे लेकर संत समाज भी आक्रोशित है। सबसे बड़ी दिक्कत तो उन लोगों की है जो हजारों किमी की यात्रा कर उज्जैन पहुंचते हैं और दर्शनों की संतुष्टि के बिना ही लौट जाते हैं।
पिछले कुछ महीनों से महाकालेश्वर मंदिर में बनी नई दर्शन व्यवस्था की वजह से श्रद्धालुओं और सुरक्षाकर्मियों के बीच टकराव की स्थिति बन रही है। गणेश मंडपम से 250 रुपये लेकर शीघ्रदर्शन करवाए जा रहे हैं। यहां से बाबा की दूरी 150 फीट है। इसी तरह भस्मारती दर्शन 200 रुपये में कराया जाता है। यह सुबह चार से छह-सात बजे तक चलने वाली भस्मारती के दौरान ही संभव है। यह दर्शन नंदी हॉल से लेकर कार्तिक मंडपम तक बैठकर ही किए जा सकते हैं। यहां जो जितना ज्यादा वीआईपी, उससे महाकाल की दूरी उतनी ही कम रहती है। यहां पैसा बोलता है, श्रद्धा नहीं। इसी तरह यदि आपके पास पैसे नहीं है तो आप गर्भगृह पहुंच ही नहीं सकते। उसके लिए तो आपको 1,500 रुपये की रसीद कटवानी पड़ेगी। यह 1,500 रुपये की रसीद दो लोगों के लिए काम आती है। यदि कोई एक व्यक्ति आया है तो उसे 750 रुपये की रसीद कटवानी पड़ती है। यह दर्शन भी वीआईपी भक्तों की कृपा पर ही होते हैं। वरना अगर कोई वीआईपी आ गया तो शीघ्रदर्शन से लेकर गर्भगृह दर्शन तक की लाइन थम जाती है। शुक्रवार की ही बात है। भोपाल के मौजूदा कलेक्टर आशीष सिंह दर्शनों को पहुंच गए तो पूरी लाइन ही एक से डेढ़ घंटे तक बर्फ की तरह जम गई। मुख्यमंत्री, मंत्री और कलेक्टरों की रसीद कटने का दावा तो करते हैं, लेकिन कोई अधिकारी यह रसीदें दिखा नहीं सका। सीधे-सीधे बाबा महाकाल को आम भक्तों से दूर कर वीआईपी का भगवान बना दिया गया है।
पंडित प्रदीप मिश्रा का कटाक्ष- मंदिर से श्रद्धालुओं को मत भगाओ
शिव महापुराण कथा के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा भी व्यवस्थाओं पर भड़के थे। उन्होंने कहा था कि मंदिर में दर्शन की व्यवस्था में लगे अधिकारी और कर्मचारी सुन लें कि उन्हें बाबा महाकाल ने यहां श्रद्धालुओं को सरल-सुलभ दर्शन करवाने का मौका दिया है। वह हजारों किलोमीटर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं को पल भर भी बाबा महाकाल की झलक न देखने दें। मंदिर समिति श्रद्धालुओं की आस्था को ध्यान में रखते हुए भगवान के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को अपने देवाधिदेव बाबा महाकाल के दर्शन जरूर करने दें। उन्हें धक्के न मारे क्योंकि कालाधिपति महाकाल सब देख रहे हैं।
संत समाज भी नाराज, यह धार्मिक स्वतंत्रता का हनन
स्वस्तिक पीठ के पीठाधीश्वर डॉ. अवधेशपुरी का कहना है कि दर्शन के नाम पर हो रही वसूली ने भक्त और भगवान में दूरी बना दी है। सरकार सोचें कि जिन भांजे-भांजियों को पांच किलो राशन मुफ्त दिया जा रहा है, उन गरीब परिवारों से महाकाल पर जल चढ़ाने के लिए 750 रुपये लेना कहां तक उचित है? गरीब भक्तों से सशुल्क दर्शन के नाम पर बाबा महाकाल के दर्शन से दूर करना उनके संवैधानिक मूल अधिकार से वंचित करना है। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को छीना जाना है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरिगिरि महाराज ने कहा कि महाकाल मंदिर की व्यवस्थाओं के अनुसार तो बाबा महाकाल के दर्शन और पूजन पर भी अब जैसे पूंजीपतियों का ही अधिकार हो गया है। यह गलत है। हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए कि बाबा महाकाल पूंजीपतियों के ही बनकर न रह जाएं। मैं सरकार से इस बात की भी चर्चा करूंगा कि आम श्रद्धालुओं से महाकाल दूर न हो जाए। वह सबके थे, सबके हैं और सबके रहेंगे।
भगवान के दर्शन में व्यवसायीकरण न हो
जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर शैलेशानंद ने कहा कि बाबा महाकाल सभी के हैं। उनके दर्शन में भी समानता होनी चाहिए। राजस्व बढ़ाना अच्छी बात है। दर्शन के नाम पर शुल्क वसूले जाने का मैं पुरजोर विरोधी हूं। राजस्व अर्जन के लिए पूर्व की तरह मंदिर में फूलों से बिजली का उत्पादन, गौशाला और अन्य तरीकों से धन लाभ अर्जित किया जा सकता है। जिस प्रकार मंदिर में दर्शन के नाम पर टिकटों में अंतर किया गया है, यह किसी सिनेमाघर की तरह प्रतीत हो रहा है। इससे भक्त आहत हैं और श्रद्धालुओं में गलत संदेश पहुंच रहा है। हमारे देवस्थल दर्शन और तीर्थाटन के लिए हैं लेकिन इसे पर्यटन के रूप में जिस प्रकार से विकसित किया जा रहा है उसका मैं विरोधी हूं।
दर्शनों से संतुष्टि नहीं, समिति की आलोचना
उज्जैन में महाकाल दर्शन के लिए पहुंचने वाले भक्तों की संख्या बढ़ी है लेकिन हर कोई मैनेजमेंट कमेटी की आलोचना कर रहा है। दर्शन तक संतुष्टि नहीं दे रहे। निशुल्क दर्शन के लिए जाने वाले ज्यादातर लोगों को तो एलईडी दर्शन से ही संतोष मनाना पड़ रहा है। मंदिर समिति को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि भक्त क्या सोचते हैं, वह तो समिति का खजाना भरकर अपने लिए तमगा जुटाने में लगे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हो या कोई और मंत्री-विधायक या नेता, उन्हें तो प्रोटोकॉल दर्शन हो ही जाते हैं। उन्हें आम भक्तों के दर्शन और संतुष्टि की तो जैसे कोई चिंता तक नहीं है।
गेट नंबर एक, चार और 13 का कोई संकेत नहीं
पैसे कमाकर श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति के जिम्मेदार खुद की पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि आम श्रद्धालु परेशान हैं। इसी वजह से सुरक्षाकर्मियों और भक्तों के बीच झगड़े बढ़ गए हैं। ऑनलाइन दर्शन के स्लॉट खुलते ही बुक हो जाते हैं। फिर श्रद्धालुओं को एक, चार और 13 नंबर से प्रवेश दिया जाता है, जिनकी तलाश करना भी कम परेशानी भरा नहीं है। ऑफलाइन में काउंटर पर जाकर टिकट कटवाना और फिर गेट तलाशने में ही श्रद्धालु परेशान हो जाते हैं।